आखिर घुंघट क्यों?
आखिर घूंघट क्यों?
बहू रानी.. जरा घूंघट तो नीचे कर, माथे तक टांग कर घूम रही हो। हमारे यहां ऐसे नहीं चलता है। शहर की होगी अपने लिए, लेकिन यहां पर हमारे रीति रिवाज चलते हैं, अपने ससुर और जेठ जी के सामने तुमको पर्दा करना पड़ेगा। वह तुम्हारे बड़े हैं उनका सम्मान करो। और कोई मेहमान आए तो उनके सामने से दांत दिखा कर मत हस देना और थोड़ी सौम्यता रखना। आखिर इस घर की बहू हो ,बहू की बन कर रहो।
बहू ये तुम्हारे जेठ लगते है इनके पाँव छूओ।तुम्हारे पति से पूरे एक महीने बड़े हैं। आरती को यह सब पसंद नहीं था। बड़े बुजुर्गों की बात तो सही थी, कि उनके पैर छूकर आशीर्वाद लो, लेकिन पति से कोई दो दिन भी बड़ा हो तो उसके सामने घूंघट करने और उसके पाँव छूने में बड़ी हिचहिचाहठ होती थी।
एक दिन अपने पति से कहा जब बाबूजी मुझे यहां बेटी बना कर लाए थे, तो यह घुंघट की प्रथा क्यों, क्या वह मुझे अपनी बेटी नहीं समझते ?और जेठ जी की तो मैं छोटी बहन के समान हूं ,फिर उनसे यह पर्दा क्यों ?यह रिश्ते क्या सब बेईमानी है? सब कहने के हैं, जब उनकी नजरों में खोट नहीं है, तो यह पर्दा किस लिए ,पर्दा तो आंखों की शर्म का होता है यदि मैं उनको कोई जवाब दूं और उनकी कोई बात न समझू और न मानू तो यह पर्दा जायज है नहीं तो यह किसलिए? और संयुक्त परिवार तो हमारी रक्षा के लिए होते हैं न कि हम पर जबरदस्ती के रीति रिवाज लगाए जाए और हमको ही असहाय महसूस कराया जाए। कोई हम पर उंगली उठाई तो हमारी तरफ से हमारा परिवार हमारा साथ दें, न कि समाज के झूठे बंधनों में बंधकर ,समाज के लिए अपनी बहू को तकलीफ दे। आरती के पति ने कहा यह तो बरसों से चलता आ रहा है ,और वैसे ही रहेगा जब तक बाबूजी चाहते हैं।
कुछ दिनों बाद करवा चौथ था सब बहूएं सुबह से काम मे काम में लगी हुई थीं। ऊपर से खाने की तैयारी चल रही थी पहले पूजा और फिर पक्का खाने की तैयारी । सभी को बहुत परेशान हो गई। सब की हालत बहुत खराब हो गई थी ऊपर से घुंघट और गर्मी का मौसम सारी बहुएं झेल रही थी ।आरती भी घुंघट डाले हुए खड़ी थी अचानक से उसको चक्कर आ गए और वह वहीं गिर पड़ी ।उसकी हालत देख सभी परेशान हो गए तुरंत डॉक्टर को बुलाया ।डॉक्टर ने कहा पहले ही भूख प्यास से उनका बीपी लॉ है ऊपर से घुंघट होने की वजह से गर्मी झेल नहीं पाई। इस कारण उनकी यह हालत हुई हैं ।जब डॉक्टर से यह बात सुनी बाबूजी बहुत परेशान हुए और बोले आज से घूंघट प्रथा खत्म तुम सब मेरी बेटियां हो और बेटी ही बनकर ही रहोगी।
करवा चौथ पर पति तोहफा देते हैं लेकिन आज तो बाबू जी ने सब को इस प्रथा से मुक्त करके इंसानियत का बहुत बड़ा उपहार अपनी बहूओं को दिया। बाबू जी ने कहा बेटों अपनी पत्नियों के घुंघट नीचे कर दो। उनका घूंघट नीचे करते ही उन सबके चेहरों पर एक मीठी मुस्कान छा गई। आज उन्हें सच में एक सच्चा उपहार प्राप्त हुआ रूढ़िवादी सोच से निकलकर बाबू जी ने एक नया कदम बढ़ाया।
नीलम गुप्ता नजरिया दिल्ली
Fiza Tanvi
03-Nov-2021 11:51 AM
Good
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ऋषभ दिव्येन्द्र
29-Oct-2021 12:55 PM
लाजवाब 👌👌
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Niraj Pandey
29-Oct-2021 12:28 AM
👌👌
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